स्वप्न तुझे
दिवाने थे तुम्हारे, था तुम्हे पता,
कभी कहा नही, बस यही थी खता,
उम्र गुजर भी जाए तो परवाह नही,
इंतेजार तुम्हारा करेंगे, चाहे तुम रहो कहीं,
खेल बुजदिली का है किस्मत का नही,
तुम मन में थी, मन ही में रही,
सपनो में आती हो तो दिन गुजरता नही,
बस चलती है सांसे तूम जिंदगी में नही…..
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मन खिन्न खिन्न आज तू स्वप्नात दिसलीस,
मन अस्वस्थ आज तू आठवलीस,
मन अस्थिर तुझे डोळे पाहुणी,
मन उदास आज, तुज दूर राहुणी,
मन नशेत आज तू स्मित हसलीस,
मन उद्विग्न आज, तू मागे न वळलीस,
मन बेभान आज, तूज स्पर्श झाला,
मन विराण आज तू कुठे हरवलीस…!
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- जयदेव ‘देवदासी’
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